Sunday, April 24, 2011

चलो जेल संगवारी

-जनकवि कोदूराम "दलित"

अपन  देश  आजाद  करे  बर , चलो  जेल  संगवारी,
कतको झिन मन चल देइन ,आइस अब हमरो बारी.

जिहाँ लिहिस अउंतार कृष्ण हर,भगत मनन ला तारिस
दुष्ट मनन-ला मारिस अऊ भुइयाँ के भार  उतारिस
उही किसम जुरमिल के हम  गोरा मन - ला खेदारीं
अपन  देश  आजाद  करे  बर , चलो  जेल  संगवारी.

कृष्ण- भवन- मां  हमू मनन, गाँधीजी  सांही  रहिबो
कुटबो  उहाँ  केकची तेल पेरबोसब   दु:ख   सहिबो
चाहे   निष्ठुर    मारय  -  पीटय , चाहे   देवय   गारी.
अपन  देश   आजाद  करे  बर , चलो  जेल  संगवारी.

बड़  सिधवा बेपारी बन के  ,   हमर  देश  मां  आइस
हमर - तुम्हर मां फूट डार के , राज - पाट हथियाइस .
अब सब झन मन   जानिन कि ये आय  लुटेरा भारी
अपन  देश   आजाद  करे  बर , चलो  जेल  संगवारी.

देख लिहिस जब हमर तुम्हर कमजोरी अऊ ढिलाई
मुसवा साहीं  बघवा- मन ला चपकिस  भूरी बिलाई
अभी भागिही,सब्बो झिन मिल के ओला  ललकारीं
अपन  देश  आजाद  करे  बर , चलो  जेल  संगवारी.

काम-बूता सब छोड़ इंकर ,अब एक बात सुन लेवव
माते  ह्वय लड़ाई  ते   माँ , मदद  कभू  झिन  देवव
इनकर पाछू  पड़  जावो , धर  -धर  के  तेज तुतारी
अपन  देश  आजाद  करे  बर , चलो  जेल  संगवारी.

उनकर मन  के  बम ,बन्दूक  ,तोप ,लौड़ी अऊ डंडा
सब   हमार  सत्याग्रह  के आगू  पड़  जाही   ठंडा  .
होवत हें बलिदान देश   खातिर   कतको नर - नारी
 
अपन  देश  आजाद  करे  बर , चलो  जेल  संगवारी.

Tuesday, April 19, 2011

हे गजानन....

-जनकवि कोदूराम "दलित"

हाथी साहीं तव सूँड़-मूड़,सब तन मनखे जस गणेश 
हे रूप,मंगल स्वरूप, बड़ अजगुत लगे तोर भेष.

हे गिरिजा सुत ! हम गिरे अऊर पद दलित मनन ला अब सम्हाल
सिन्दूर बदन ! स्वाधीन हिंद के ,जन-जन ला कर लाल-बाल.

हे लम्बोदर ! अब हमर उदर पाले खातिर दे दू रोटी
हे पीताम्बरधारी अब तो दे लाज ढँके बर लंगोटी

मूषक वाहन ! बड़हर मन हम ला चपके हें मुसवा साहीं
चुहकिन सब रसा हमार अउर अब हाड़ा-गोड़ा खाहीं .

हे गजानन ! दू गज भुइयाँ तक नइये आज हमार करा  
'मिलही खेती-बारी-घर' ये कइथें कतको झन मिठलबरा .

हर के सपूत ! हर हमार देश के,दुःख दारिद,अज्ञान आज
फरसाधारी ! कर साफ फरेबी मनला, बचा हमार लाज.

हे गणनायक ! किरपा करके 'गणतंत्र' सफल करदे हमार
हे एकदंत ! अब एक बरन कर दे बाम्हन ,बनिया,चमार.

हे दीनबंधु ! हम दीन दलित मनके  सुनके सकरुण पुकार
हे अशरण-शरण दयालु देव ! अब आके हमला तहीं तार .

हे बिघन -हरन ! हर बिघन सबो,हे सिद्ध-सदन ! कर सिद्ध काम
हे मोदक प्रिय ,जग वन्दनीय ,शत-शत प्रणाम,शत-शत प्रणाम .

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