Monday, April 4, 2011

सुग्घर राज बनाबो .......


                       -जनकवि स्व.कोदूराम"दलित"

लाने  हन     जुरमिल  के       जइसे  हम्मन  सुराज
तइसे   येला   अब   सुग्घर   राज   बनाबो  जी
कतको झन अब तक ले जस के तस परे हवयं
उन  बपुरा  मन  के  सब दुःख दरद मिताबो जी .

पर  ये  सब  जुच्छा        गोथियावब  माँ होय नहीं
एकर  खातिर        अब  नंगत  काम करना परिही
अउ  छोड़ - छांड  के  सबो किसिम के लंद-फंद
निच्चट      हम  ला   एकर  पाछू  परना   परिही.

हम   संत    विनोबा गाँधी  अउ   नेहरु जी  के
मारग  माँ  जुरमिल के  सब्बो  झन चली  आज
 तज  अपस्वारथ  , कायरी ,फूट अउ भेद-भाव
पनपाई   जल्दी   अब     समाजवादी   समाज.

कमिया किसान हो,  तुम्हला खेत बलात  हवयं
धर नांगर - बक्खर जावव तुम्मन खेत - खार
उपजा  के  अन्न  भरो         ढाबा - ढोली  मन  माँ
जेमा  सब - ला  मिल  जाय  पेट भर भात डार.

मजदूर सुनौ जी,तुम्हार बिगर तो लगत रथै
ये   हमर  कारखाना - खदान  सुन्ना - सुन्ना
ये  बेर  माँ  तुम्मन      चिटको   सुस्तावौ  झन
अऊँटा  के  लहू - पसीना   काम   करो  दुन्ना.

घर  में  खुसरे  कब  तक  ले    रहिहौ  बहिनी हो
अब तुम्हू  दिखावौ        चिटिक  अपन मर्दानापन
तुम चाहौ तो स्वदेश बर सब कुछ कर सकथौ
झाँसी   वाली   रानी   के सुरता   भूलौ   झन .

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