Monday, May 30, 2011

गरीब गोहार

-जनकवि स्व.कोदूराम "दलित"

परमेश्वर कइसन दिन आइस ,का कलजुग सिरतोन खराइस
पापिन – चण्डालिन  महँगाई , हम गरीब – गुरबा ला खाइस

कइसे  करके पाली –पोसी डउकी – लइका , कुटुम – कबीला
कब तक  हम बड़हर मन के ,  देखत रहीं चरित्तर –लीला

अड़बड़  मुसकिल  होगे  हमला , पाये खातिर रोजी - रोटी
निठुर  मनन के करना परथै ,गजब किलौली ,पाँव –पलौटी

बड़े  बिहिनिया ले  संझा तक  , माई – पीला  जाँगर पेरीं
पापी  पेट  भरे  खातिर  हम  , गारी  खाथीं घेरी - बेरी

पसिया - पेज ,कभू तिउँरा के ,ठोम्हा भर घुघरी हम खाईं
होगे  हमर  पुनस्तर  ढीला ,  काकर मेर जाके  गोहराईं

लइका  मन  हमार  लुलवाथें , पाये  बर  कोंढ़ा के रोटी
खेत - खार में जाके खाथैं , उरिद - मुंगेसा अऊ चिरपोटी

लाँघन - भूखन मरथीं हम्मन , ओमन माल-मलीदा खाथैं
मरकी  अउर  कुढ़ेरा  साहीं , उनकर  पेट बड़े  हो जाथैं

हमर  सिरागे  रुँजी-पूँजी , ऊँकर  मन  के  भरगै थैला
हम्मन अनपढ़ ,लेड़गा - कोंदा,बने हवन घानी कस बैला

कब सुराज के सुख ला पाबो ,कब मिलिही भुइयाँ घर कुरिया
कब हमार मन के दिन फिरही ,कब तक रहिबो दुरिहा-दुरिहा

निच्चट कुकुर - बिलाई साहीं , कब तक ले ठुकरायें जाबो
ठगरा मन  सब  ठगतेच जाथैं,कब तक इनला बड़े बनाबो

जर जावै अइसन जिनगानी ,जम्मो झिन ला जउन अखरगे
का ? हमार बर देउँता-धामी , घलो रूठिन कि पट ले मरगें

कब तक हम भरमाये जाबो,कब तक कहिबो किस्मत खोटी
बीता  भर चिरहा -फरिहा के , कब तक रही हमार लिंगोटी





2 comments:

  1. स्व: कोदू राम "दलित" जी की रचना पढवाने के लिए धन्यवाद|

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  2. बेहद उत्कृष्ट रचना है यह.
    आपको मेरी हार्दिक शुभकामनायें

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