Tuesday, August 30, 2011

“ तकली “

-जनकवि स्व.कोदूराम "दलित"

सूत  कातबो   भइया , आव
अपन - अपन तकली ले लाव.

बिल्कुल कम हे  येकर दाम
पर आथय ये  अड़बड़ काम.

छोड़ो आलस , कातो सूत
भगिही  बेकारी  के भूत.

घर में रहो  कि बाहिर जाव
जिहाँ जाव , तकली ले जाव.

तकली  चलथे  खरर -खरर
सूत  निकलथे  सरर -सरर.

उज्जर-उज्जर निकलय तार
जइसे  रथय   दूध के धार.

भूलो  मत  बापू के बात
करो कताई तुम दिन-रात.

धंधा  इही  करो सब झन
खादी पहिन , बचाओ धन.


(आजादी प्राप्ति के प्रारम्भिक समय में रचित)