सहकारी सप्ताह पर आज भी प्रासंगिक
जनकवि स्व.कोदूराम “दलित” की कविता (छंद)
सहकारिता से बाँधा बानर - भालू ने सेतु
सहकारिता का यश , राम ने बखाना है
सहकारिता से ब्रजराज ने उठाया गिरि
सहकारिता का यश , श्याम ने बखाना है
सहकारिता से लिया गाँधी ने स्वराज्य आज
जिसके सुयश को तमाम ने बखाना है
उसी सहकारिता को हमें अपनाना है ‘औ’
अनहोना काम सिद्ध करके दिखाना है.
तन – मन – धन से यहाँ का जन - जन अब
निरमाण ही के पीछे हो गया दीवाना है
बन गये ‘ भाखरा-भिलाई ’ से नवीन तीर्थ
जिनसे कि मन - वांछित फल पाना है.
चंद बरसों में ही चमक उठा देश यह
मिला इसे जन – सहयोग मनमाना है
यहाँ की प्रगति का चमत्कार देख , इसे
दुनियाँवालों ने – ‘ एक अचरज ’ माना है.
पर के अधीन रह पिछड़ा था देश यह
सहकारिता से इसे आगे को बढ़ाना है
‘ योजनाएँ ’ अपनी सफल कर – कर अब
उन्नति के श्रृंग पर इसको चढ़ाना है
अन्न – वस्त्र – घर आदि की समस्या हल कर
अविलम्ब सारे भेद - भाव को भगाना है
क्रांति एक लाना है ‘औ’ गिरे को उठाना है ‘औ’
रोते को हँसाना है ‘औ’ सोते को जगाना है.
देने का समय आया , देओ दिल खोल कर
बंधुओं , बनो उदार , बदला जमाना है
देने में ही भला है हमारा ‘औ’ तुम्हारा अब
नहीं - देना याने नयी - आफत बुलाना है
देश की सुरक्षा हेतु स्वर्ण देके आज हमें
नये - नये कई अस्त्र - शस्त्र मँगवाना है
समय को परखो ‘औ’ बनो भामाशाह अब
दाम नहीं , अरे , सिर्फ नाम रह जाना है
बहुत सुन्दर रचना .
ReplyDeleteबढ़िया रचना पढवाई आभार.....
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी रचना है ...बधाई स्वीकार करें .......
ReplyDeletesundar rachana padhvane ke liye aabhar..
ReplyDeleteसार्थक प्रस्तुति। मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है । आभार.।
ReplyDeleteसमय को परखो ‘औ’ बनो भामाशाह अब
ReplyDeleteदाम नहीं , अरे , सिर्फ नाम रह जाना है
बहुत सुंदर गुरू। छा गए । मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है । धन्यवाद ।